बुधवार, जुलाई 21, 2010

पिछले डेढ़ महीना-बिरह का महीना

पिछला डेढ़ महीना, मेरे लिए बिरह का महीना रहा। इस दौरान कितने ही लोग अचानक जिन्दगी से चले गए, कुछ सदा के लिए और कुछ फिर मिलने का वायदा कर। हमारी कंपनी आर्थिक तंगी की चपेट में उस वक्त आई, जब आर्थिक तंगी के शिकार देश वेंटीलेटर स्थिति से मुक्त हो चुके थे, कहूँ तो हमारी किश्तियों ने किनारों पर आकर जवाब दिया। जॉब जाने का कभी अफसोस नहीं हुआ, हां, लेकिन अगर अफसोस हुआ कुछ लोगों से जुदा होने का। जब भी जुदा होने का अफसोस अपनों से करने लगते तो अचानक किसी बुद्धजीवि की बात कहकर उस स्थिति को संभाल लिया जाता, अच्छे लोगों को एक जगह स्थाई नहीं होना चाहिए, पानी की तरह व रमते जोगियों की भांति चलते रहना चाहिए। ऐसी ढेरों बातें, जो जुदाई के गम को कम कर देती थी, एक दूसरे से हम दोस्त बोलते रहते थे। किसी ने कहा है, जमीनी फासले कितने भी क्यों न हों, बस दिलों में दूरियां नहीं होनी चाहिए। ऐसे हालातों में इंदौर छोड़ दिया, इंदौर छोड़ने का गम कम, खुशी ज्यादा थी, क्योंकि अपने शहर लौटना किसे अच्छा नहीं लगता। शाम ढले तो परिंदे भी घरों को लौट आते हैं, मैं तो फिर भी साढे तीन साल बाद अपने वतन लौट रहा था। इस डेढ़ महीने के दौरान मुझे पहला झटका उस दिन लगा, जिस दिन एक मित्र का सुबह सुबह फोन आया कि विशाल का छोटा भाई सड़क हादसे में घायल हो गया। इस सूचना ने मानो, प्राण ही निकाल लिए हों। सबसे पहले जुबां से वो ही शब्द निकले, जो किसी अपने के लिए निकलते हैं, हे भगवान मेरे सांसों से कुछ सांस ले, उसमें डाल दे। इंदौर शहर में अगर कोई दरियादिल इंसान मिला तो विशाल, अपने नाम की तरह विशाल। अगली सुबह दोस्त का फिर फोन आया, विशाल का भाई चल बसा। इतनी बात सुनने के बाद विशाल को फोन करने की हिम्मत नहीं थी, और मैंने किया भी नहीं, क्योंकि जब मैं ही भीतर से संभल नहीं पा रहा था, उसको क्या हिम्मत देता। मैंने अपने दोस्त को कहा कि तुम उसके पास जाओ और हिम्मत देना। किस्मत देखो, जनक को भी शाम की रेल गाड़ी से अपने घर लौटना था, वो भी जॉब छोड़ चुका था। मुझे और जनक को तो दुख इस बात का था कि विशाल का भाई चला गया, लेकिन विशाल की किस्मत देखो, वो इस महीने में मुझे, जनक, नितिन और न जाने कितने दोस्तों को अपने शहर से विदाई दे चुका था। सोमवार को विशाल का मेल मिला कि उसने ऑफिस ज्वॉइन कर लिया, यह मेरे थोड़ा सा राहतपूर्ण मेल था, क्योंकि ऑफिस का काम व दोस्तों का मिलवर्तन उसके दर्द को थोड़ा सा कम कर देंगे। मैंने पंजाब से गुजरात के लिए रवाना होते हुए रेलगाड़ी में उसको फोन किया, उसने बताया कि उसने किताब संन्यासी जिसने अपनी संपत्ति बेच दी को फिर से पढ़ना शुरू कर दिया, मैंने उसको बताया कि मैंने पिछले डेढ़ महीने में अच्छे दोस्तों की कमी न खले के चक्कर में चार किताबें पढ़ डाली, डेल कारनेगी की समुद्र तट पर पिआनो, ऑग मेंडिनो की विश्व का सबसे बड़ा चमत्कार, चौबीस घंटों में बदलें जिन्दगी पयॉलो क्योलो की अल्केमिस्ट, जिससे कुछ लोग कीमियागर के नाम से भी जानते हैं। रेल गाड़ी जैसे ही राजस्थान को क्रोस करते हुए गुजरात में इंटर होने लगी, तो मेरे मोबाइल पर संदेश आने लगे, यह संदेश नेटवर्क बदलने का अलर्ट नहीं थे, यह संदेश एक बेहद बुरी खबर लेकर आए थे। इनमें लिखा था, वेबदुनिया मराठी के पूर्व वरिष्ठ उप संपादक एक सड़क हादसे में चल बसे, पहले पहल तो खबर अविश्वासनीय लगी, लेकिन संदेशों के बाद कुछ मित्रों के फोन आए, जो इस बुरी खबर को सच होने की पुष्टि कर रहे थे। इस घटना में मुझे एक बार फिर से बेचैन कर दिया, आखिर हो क्या रहा है? जिन्दगी ने आखिर हम सबको किस तरह अलग थलग किया है। अभिनय कुलकर्णी, जिसे मैं जल्दबाजी में अभय कुलकर्णी कह जाता था, मेरी अंतिम मुलाकात तब हुई, जब मैं बेवदुनिया छोड़ने का फैसला कर चुका था, एक कांफ्रेंस रूम में। फैसला करने के बाद जैसे ही मैं वेबदुनिया के ऑफिस में पहुंचा तो सब मेरी प्रतिक्रिया जाने के लिए तैयार थे, आखिर क्या हुआ? क्यों कि इस बिरह के मौसम की शुरूआत मुझसे होने वाली थी। मैंने जैसे ही बताया कि मैं वेबदुनिया छोड़ने वाला हूँ, तो बात पूरे ऑफिस में जंगल की आग की तरह फैल गई। मेरे बाद शायद अभिनय कुलकर्णी को भी बुलाया जाना था, वो मेरा फैसला सुनने के बाद काफी बेचैन हो गए, होते भी क्यों न, आखिर पूरा परिवार जो इंदौर में बसा चुके थे, और कंपनी के प्रति खुद को पूरी तरह समर्पित कर चुके थे, कई अच्छे मौके उन्होंने अच्छे वक्त भी ठुकरा दिए थे, लेकिन अब स्थिति ऐसी थी कि अब उन मौकों को आगे से जाकर मांगना था, जिनको ठुकरा चुके थे वो कई दफा। उसके दिन के बाद, मेरी और उनकी कोई बात नहीं हुई, लेकिन कल जैसे ही मुझे पता चला कि वो इस तरह दुनिया से चले गए, पांव तले से जमीन निकल गई। यह बेहद बुरी खबर थी मेरे लिए अब तक की, क्योंकि वेबदुनिया के क्षेत्रीय भाषा के जितने भी पोर्टल थे, उन पोर्टलों में सबसे बढ़िया वरिष्ठ उप संपादक थे, जिन्होंने लम्बे समय तक बिना किसी विवाद के अपना कार्यकाल खत्म किया, लेकिन वो इस तरह दुनिया से ही रुखस्त हो जाएंगे किसी ने नहीं सोचा था। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।


5 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

khoob kaha....
bahut khoob kaha.....

शिवम् मिश्रा ने कहा…

सही कहा आपने - पिछले डेढ़ महीना-बिरह का महीना !

Udan Tashtari ने कहा…

यही जिन्दगी है...लोग मिलते हैं, बिछड़ जाते हैं. जो कभी न मिलने को बिछड़ते हैं, उनके जाने का गम बहुत सालता है.

धीरज और संतुलन ही ऐसे वक्त को पार लगाता है.

Rajeysha ने कहा…

आपने तो बहुत सारे पुराने यार याद दि‍ला दि‍ये।

amar jeet ने कहा…

जन्म दिन दी लख लख बधाईया!