बुधवार, अगस्त 22, 2012

जितेंद्र गोभीवाला- तेरी सर्कस ही अलहदा थी यार

मेरी और जितेंद्र गोभीवाला की पहली मुलाकात आज से करीबन दस पहले हुई थी, जब मैं गांव से बठिंडा शहर पहुंचकर दैनिक जागरण में अपने कैरियर की शुरूआत कर रहा था, और जितेंद्र गोभीवाला की कामेडी भरपूर कैसिट 'कट्टा चोरी हो गया' रिलीज हुई थी। वो छोटी सी मुलाकात, कुछ समय बाद एक अच्‍छी दोस्‍ती में बदल गई। उसका कारण एक ही था, जितेंद्र गोभीवाला का मिलनसार व्‍यवहार और हमारा दोनों का समाज सेवा से लगाव, और एक ही संस्‍था से जुड़ाव।

मैं मीडिया लाइन में नया था, और मीडिया वालों का एक टिकाना था 'मेहना चौंक' स्‍थित यूनाइटेड वेलफेयर सोसायटी का ऑफिस या तहसील। यहां पर जितेंद्र से कई बार मुलाकातें हुई। उसको करीब से जानने का मौका मिला। वो कलाकार बाद में पहले दोस्‍त था। कट्टा चोरी हो गया के बाद जितेंद्र गोभीवाला की दूसरी वीडियो सीडी आई लो कर लो गल्‍ल। अब जितेंद्र स्‍टेज शो छोड़कर अपने नए प्रोजेक्‍ट की तरफ बढ़ रहा था कि मुझे शहर छोड़ना पड़ा और उसको बीमारी ने अपनी जकड़ में ले लिया।

उसके बीमार होने की ख़बर मुझे मध्‍यप्रदेश में मिली तो दिल पीड़ा से तड़फ उठा। उसकी सलामती के लिए दुआ की। पिछले पांच छह सालों में एक वक्‍त तो ऐसा भी आया, जब लगता था कि अब जितेंद्र जाएगा हम को छोड़कर। मगर दुआओं ने अपना असर दिखाया, जितेंद्र गोभीवाला फिर से तंदरुस्‍त होने लगा। मगर बीमारी अंदर अंदर खा रही थी, पर चेहरे पे शिकन तक नहीं थी। बस जब भी मिलता हंसते हुए मिलता। मैं और जितेंद्र एक बार चैकअप के लिए चंडीगढ़ पीजीआई गए, वो पूरे सफर ऐसे मस्‍त मौला इंसान की तरह बातें करता हुआ गया जैसे वो मुझे सांत्‍वना दे रहा हो, और मानो वो बीमार नहीं, मैं बीमार हूं।

मेरी और उसकी अंतिम मुलाकात डेढ़ माह पूर्व उसकी बीबीवाला चौंक दुकान पर हुई, जहां पर पहले भी बहुत सी मुलाकातें हुई। इस बार वो काफी तंदरुस्‍त नजर आ रहा था। उसके चेहरे पर मुस्‍कान थी। उसने कहा, इस बार सर्कस पक्‍का लगाएंगे। सर्कस उसका तकियाकलाम था। मुझे नहीं पता था, दोस्‍त तू इस बार इतनी बड़ी सर्कस लगा जाएगा, वो भी बिना बताए।

कॉलेज में पढ़ाई करते हुए कामेडी का शौक पड़ गया और जसविंदर भल्‍ला को अपना गुरू धारण कर लिया। उनके सन्‍निध्‍य में उनके साथ जितेंद्र ने कई बार काम भी किया। जितेंद्र गोभीवाला की अंतिम वीडीसी लो कर लो गल्‍ल थी, मगर वो आगे के लिए कुछ संजो रहा था, लेकिन वो उस को दुनिया के सामने रखता कि भगवान ने उसको अपने पास बुला लिया। जिन्‍दगी के बुरे वक्‍त में भी चेहरे पर शिकन नहीं आने दी। अपने परिवार और दोस्‍तों को उसी तरह दर्द छुपाकर हंसाता रहा, जैसे एक कामेडियन घर के दर्द को सीने में दबाकर अपनी बातों से जमाने को हंसाता है। मगर उसकी अचानक विदाई ने आंखें नम कर गई।

कुलवंत हैप्‍पी