मंगलवार, जून 01, 2010

पितृ पर्वत - मेरे लिए स्वर्ग सा

इंदौर में मेरी सबसे पसंदीदा जगह है पितृ पर्वत। जहाँ पहुंचते ही मैं तनाव मुक्त हो जाता हूँ, शायद इसलिए कि वहाँ बुजुर्गों का बसेरा है, और मुझे बुजुर्गों के साथ समय बिताना ब्लॉगिंग करने से भी ज्यादा प्यारा लगता है, लेकिन शर्त है कि बुजुर्ग सोच से युवा होने चाहिए। यहाँ पर बुजुर्गों की याद में पेड़ पौधे लगाए जाते हैं, लेकिन यह पूरी तरह से नहीं कह सकता कि अपने बुजुर्गों की याद में लगाए इन पेड़ पौधों को कोई बाद में देखने आता भी है कि नहीं। चलो छोड़ो, वैसे भी हम खानापूर्ति में कुछ ज्यादा ही विश्वास करते हैं, इतना ही काफी है कि बुजुर्गों की याद में पेड़ पौधे तो लगते हैं। हो सकता है कि कभी कोई पोता या पोती अपने प्रेमी के साथ यहाँ घूमने आए, और उस पेड़ के तले बैठकर सुकून के पल गुजारे, जिसे बहुत पहले उनके परिजनों ने उनके पूर्वजों की याद में रोपा था। लेकिन मेरी हैरत की तब कोई हद नहीं रहती, जब कोई इंदौर में सालों से रह रहा व्यक्ति कहता है, वहाँ तो केवल पेड़ पौधे ही लगाए जाते हैं, वहाँ घूमे जैसी तो कोई चीज ही नहीं। वो चीज कहते हैं, जिसको मैं स्वर्ग कहता हूँ। रविवार शाम को अपने कुछ जान पहचान के लोगों के साथ पितृ पर्वत की सैर करने निकला, वो सब सालों से इंदौर में रह रहे हैं, लेकिन इस स्वर्ग से रूबरू कभी नहीं हुए, लेकिन रविवार जैसे ही उन्होंने यहाँ का नजारा देखा तो देखते ही रह गए। एक घंटे में लौटकर आने की सोचकर गए, करीब साढ़े तीन घंटों बाद घर की तरफ लौटे। वहाँ पहुंचकर जो आनंद मुझे मिलता है, वो मैं ही जानता हूँ, क्योंकि दुनिया में आनंद एवं सत्य को जानने के लिए खुद जाना पड़ता है, वरना दोनों सदैव अधूरे रहते हैं। इसके बाद पता नहीं, अब कब मौका मिलेगा, इन बुजुर्गों से मिलने का, जो पेड़ पौधों के रूप में खड़े मेरे इस स्वर्ग की शोभा को चार चाँद लगाते हैं, क्योंकि अब इस परिंदे का इंदौर से दाना पानी खत्म हो चुका है, और अपने घर की तरफ कूच कर रहा है। दिन प्रति दिन फैलते इंदौर को देखकर सोचता हूँ कि जब अगली बार इंदौर आऊंगा, अपने कुछ मित्रों से मिलने क्या इंदौर के बाहर बाहर स्थित इस स्वर्ग के दर्शन हो पाएंगे? क्यों यहाँ के भूमाफिया ऐसे हैं कि गार्डन तक बेचते हैं, और सरकारी अधिकारियों को भनक तक नहीं लगती।