रविवार, मई 31, 2009

एक कश ने बिगाड़ दिए


कहते हैं कि एक कदम हमको मंजिल तक पहुंचता है तो वहीं धुएं का एक कश बर्बादी की डगर पर खींच ले जाता है, आम लोगों की तरह मेरे भी दोस्त थे, उनके पास समय बहुत था, तो एक दिन मस्ती मस्ती में, मजाक मजाक में किसी के कहने पर धुएं का एक कश ले लिया, फिर तो क्या कश पर कश का सिलसिला चल पड़ा, लेकिन वो मेरे सामने नहीं पीते थे। मेरे एक दोस्त को तो मेरे पिता ने धूम्रपान करते हुए खेत में देख लिया, और उसके बोले कि आज के बाद हैप्पी के साथ नजर मत आना, वो बोला आज के बाद नहीं पिऊंगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो तो वहां से बचने का बहाना था, उसके बाद उनको सिग्रेट बीड़ी में भंग के पौधे से उतरा हुआ माल भरकर पीने की आदत पड़ गई। वो धूम्रपान का आदी हो चुका है, मुझे तब पता चला, जब उसका गुलाब से चेहरे पर छाइयां पड़ना शुरू हो गई। मैं अन्य दोस्त भी धूम्रपान के आदी है, इसबात का पता तब चला, जब मैं एक बार शहर से गांव गया था, और सुभाविक था कि मैं उनसे मिलने जाऊं, रात हुई तो मैं भी उनके साथ बस स्टैंड की तरफ टहलने निकल गया, वो मुझे किसे बहाने पीछे छोड़कर जाना चाहते थे, लेकिन मैं उनके कदमों से कदम मिलाता चल गया। वो दुकान पर पहुंचे, तो दुकानदार ने फटाक से सिग्रेट निकालकर दे दी, उनके बिन बोले, क्योंकि उसको पता था कि ये टोली सिग्रेट पीने आती है। उन्होंने ने पहले तो इंकार किया, लेकिन पीछे से आवाज आई रोज तो पीते हैं, आज हैप्पी के सामने भी पी लें। एक की तो कश ने जान भी ले ली, वो मेरे साथ कबड्डी खेला करता था, लेकिन उसके मां बाप ने उसको अच्छी पढ़ाई के लिए मंडी के बड़े स्कूल में भेजना शुरू कर दिया, जहां पर उसको सिग्रेट पीने की आदत हो गई। धीरे धीरे सिग्रेट में नशीले पदार्थ मिलाकर पीने की आदत पड़ गई। वो मेरा हम उम्र था, उसकी शादी कुछ साल पहले हुई थी और वो शादी के एक साल बाद भरी जवानी में इस दुनिया को छोड़कर रुखस्त हो गया।

रविवार, मई 10, 2009

मां से तोड़ आया अनजाने में रिश्ता...

यारों मैं इतना बुरा भी नहीं कि मां की कदर न करूं, मैं भी आपकी तरह मां से बहुत प्यार करता हूं और करता था एवं करता रहूंगा. लेकिन एक दिन अनजाने में उस मां से रिश्ता तोड़ आया, जब मुझे मालूम हुआ तो मैं बहुत रोया. हुआ कुछ इस तरह कि आज से तीन साल पूर्व जब मेरी मां ने सरकारी अस्पताल के बिस्तर पर दम तोड़ा, तो कुदरती था कि उसका अंतिम देह सस्कार किया जाए. मेरी मां की आर्थी शमां घाट पहुंची, उसकी चिता को अग्नि के हवाले कर दिया. उसके बाद एक रस्म होती है कि मरने वाले की चिता के पास कुछ डक्के (लकड़ी की तीलियां) बिखरे पड़े होते हैं, सब लोग उन डक्कों को चुगकर वहीं रामबाग में तोड़ देते हैं और फिर वहां से चल देते हैं. वहां सबको देखादेखी मैंने भी वैसे ही डक्का तोड़ दिया और चिता की अग्नि पर फेंक दिया. कुछ दिनों बाद जब मुझे उस रस्म के पीछे का अर्थ पता चला तो बहुत दुख हुआ, उसका मतलब होता है कि अब हमारा मरने वाले से कोई नाता नहीं, हम इस डक्के के साथ उस रिश्ते को भी तोड़ रहें है, जो तुम्हारा हम से था. मुझे इस बात का दुख है कि मैं उस मां से रिश्ता तोड़ आया, जिसने नौ माह मुझे पेट में रखा, कई सालों तक सीने से लगाकर सुलाया, अपने सीने का दूध पिलाकर बड़ा किया, उंगली पकड़कर चलना सिखाया, मुझे बोलना सिखाया.बेशक उसकी हर बात मेरे साथ है, लेकिन उक्त बात का दुख मुझे हमेशा होता है, उस मैं उसके अंतिम सस्कार पर नहीं रोया, लेकिन वैसे याद कर अक्सर रोता हूं, अगर वो होती तो शायद ऐसा होता, घर जाता तो सीने से लगाती, प्यार करती, आंखों से वजन मापती..हाथों से खाना खिलाती...
ਹੁੰਦੇ ਨੇ ਦਿਲ ਦਰਿਆ ਮਾਂਵਾਂ ਦੇ