गुरुवार, जून 02, 2011

जॉब छोड़ने के एक साल बाद

आज हर कोई पैसा कमाना चाहता है, वो भी इतना कि वह अपने सपनों को साकार कर सके, लेकिन हिन्‍दुस्‍तान में नौकरी व्‍यवस्‍था ऐसी है कि वह आपको अमीर बनने भी नहीं देती और भूखा मरने भी नहीं देती। ऐसे में लाजमी है कि हर व्‍यक्‍ित ऐसा अवसर ढूंढता है जहां से वह अपने सपनों को साकार करने लायक आमदन कमा सके। मैं भी उन लोगों में ही शामिल हुं, लेकिन पैसा कमाने के लिए उस रास्‍ते पर कभी नहीं चलता, जिसके लिए मेरी आत्‍मा मुझे आज्ञा नहीं देती। आप सभी की तरह मेरी आंखों में भी सपने हैं, और उन सपनों को साकार करने की शक्‍ित, जो मुझे ईश्‍वर की ओर से तोहफे में मिली है, मुझे भगवान ने वार्निग डिजायर का गुण बख्‍शा हुआ है, जो बच्‍चों में होता है। वो अपनी हठ पूरी करने के लिए मां बाप को मजबूर कर देते हैं, और मेरे हिसाब से यह सारी सृष्‍टि मानव के लिए मां बाप से कम नहीं। जिन जिन लोगों ने वर्निंग डिजायर की, सृष्‍टि ने तथास्‍तु कहते हुए उसको पूरा किया, चाहे वो वॉल्‍ट डिजनी हो या फिर बिल गेट्स। मेरी बचपन से इच्‍छा थी, कोई ऐसा बिजनस करूं, जिससे में कुछ लोगों की जिन्‍दगियां बदल सकूं, और जो प्‍यार दुनिया ने मुझे दिया उसका कुछ कर्ज अदा कर सकूं। मुझे याद है, इस बिजनस के मिलने से एक साल पहले मैंने एक बेहतरीन जॉब को छोड़ते हुए जॉब खोने का मलाल करने की बजाय, कंपनी अधिकारियों के सामने कुछ शब्‍द कहे थे, जो आज आपके सामने कहने जा रहा हूं, मुझे लेखक बनना है और मुझे एक बेहतरीन जिन्‍दगी जीनी है, और मुझे आम आदमी की मौत नहीं मरना, मैं खुद का बिजनस खड़ा करूंगा और भारत के तीन शहरों में से किसी एक में रहना पसंद करूंगा, चंडीगढ़, दून और गांधीनगर। मैं जॉब छोड़ने के बाद पंजाब चला गया था, लेकिन उन शब्‍दों को कुदरत ने चुपके से सुन लिया था, और एक साल पूरा होने से पहले कुदरत ने मुझे गांधीनगर में भेज दिया एक नए बिजनस के साथ। उन शब्‍दों के मुताबिक ईश्‍वर ने मुझे बिजनस और शहर दे दिया, असल में कहूं तो एक बेहतरीन जिन्‍दगी जीने का एक सुनहरा अवसर, अब मैं इस अवसर को घोषणा नहीं चाहता, इस लिए एक साल पहले कहे हुए शब्‍दों को याद करते हुए मैंने अपने एक और सपने को साकार करने की ओर कदम बढ़ाने शुरू कर दिए, जी हां, लेखक बनने की ओर। जब कुदरत मेरा साथ दे रही है तो मुझे कोशिश करने में क्‍या गुरेज है। मैंने किताब लिखने के लिए भी प्रयत्‍न करने शुरू कर दिए, एक बेहतरीन बुक लिखने के लिए, मैं घोषणा कर रहा हूं कि मैं किताब लिख रहा हूं, जैसे ही घोषणा की तो एक दोस्‍त ने सुन लिया और कहा, इतना उत्‍साह अच्‍छा नहीं होता, तुम असफल हुए तो लोग हंसेंगे, मैंने कहा, अगर असफन न हुए तो, सफलता के लिए तालियां भी तो यही बजाएंगे। उसने फिर रोका, लेकिन मैंने अब उसकी बात को चुनौती के रूप में ले लिया, और काम को तेज कर दिया। मैं सोचता हूं, हम घोषणाएं करने से क्‍यों डरते हैं, हमको घोषणाएं करनी चाहिए, जैसे कुछ फिल्‍म निर्देशक फिल्‍मों की घोषणाएं करते हैं, और वो फिल्‍में अधर में अटक जाती हैं क्‍या वह निर्देशक फिल्‍में बनाना बंद कर देते हैं, नहीं, वह अगले प्रोजेक्‍ट पर काम करना शुरू कर देते हैं, जब समय अच्‍छा होने लगता है तो पुरानी घोषणाओं को पूरा कर देते हैं। मैं नए बिजनस और अपनी घोषणाओं के साथ गांधीनगर गुजरात शिफट हो चुका हूं, उम्‍मीद है कि एक बेहतरीन जीवन जीकर इस दुनिया से विदा लूंगा। बाकी बातें बाद में दोस्‍तों फिर मिलेंगे। घोषणाएं करो, याद रखो कोई सुन रहा है।

रविवार, मार्च 27, 2011

रास्ते में राधिका मिल गई

लम्‍बे समय के बाद फिर से खुली खिडक़ी पर लौटा हूं। मुझे पता है कि आपको लोगों को मेरी अगली किश्त का इंतजार नहीं रहता, क्‍योंकि न तो मैं चेतन भगत हूं और न बिग अड्डा का अमिताभ बच्चन, एक साधारण भारतीय हूं, और कुछ लोगों की तरह मुझे भी डायरी लिखने का शौक है, पर सार्वजनिक रूप में, निजी नहीं। आज की किश्त में एक रेल यात्रा के बारे में बताने जा रहा हूं, जोकि मेहसाना से शुरू होती है और बठिंडा सिटी के रेलवे स्टेशन पर खत्म। मुझे पढ़ने का बहुत शौक है, लेकिन कोर्स की किताबें नहीं, बल्कि पत्रिकाएं व जानकारी देने वाले रोचक समाचार पत्रों के पन्ने। मैं शनिवार को जैसे ही मेहसाना के रेलवे स्टेशन पर पहुंचा तो मुझे वहां लगे ब्‍लॉक ने बताया दिया था कि गाड़ी आने में अभी एक घंटा बाकी है। इस एक घंटे को कैसे गुजारा जाए, इस पर मैंने बिल्कुल विचार नहीं किया, क्‍योंकि रेलवे स्टेशन में प्रवेश करते ही मेरी निगाह वहां स्थित बुक स्टॉल पर पड़ी, जहां पर बहुत सारी पत्रिकाएं व एक हिन्दी का न्यूजपेपर पड़ा था, जिसका नाम था राजस्थान पत्रिका, मैंने इस समाचार पत्र व दैनिक भास्कर की पत्रिका लक्ष्य को खरीदा, सच में दोनों पढ़ने के बाद लगा कि मैंने इस बार भी गलत जगह पैसे खर्च नहीं किए। लक्ष्य पत्रिका में भी पॉजिटिव थिंक की बातें लिखी हुई थी, और राजस्थान पत्रिका के मी डॉट नेक्‍सट में भी पॉजिटिव एटिट्यूड से संबंधित भरपूर जानकारी थी। दोनों को पढ़ते पढ़ते कम समय निकल गया पता ही नहीं चला। इतने में रेलगाड़ी प्लेटफार्म पर आ गई। मैं बैग उठाकर रेल गाड़ी की तरफ बढ़ा, लेकिन दिमाग इन दोनों चीजों में अभी भी मगन था। मैं एस सिक्‍स में घुसा और अपनी सीट नम्‍बर के पास गया था तो पता चला कि मेरी सीट एस सिक्‍स में नहीं और एस सेवन में है, मैं सॉरी बोलते हुए कोच से बाहर की तरफ दौड़ा और पहुंच गया अपनी सीट पर। मैं पूरी तरह चुपचाप, मानो जैसे में मौन धारण कर लिया हो। यह रिजर्वेशन कोच, मुझे जनरल कोच जैसा लग रहा था, क्‍योंकि मेरे जाने से पूर्व मेरी वाली सीट पर पांच जन बैठे हुए थे, जबकि सामने वाली सीटों पर छोटे छोटे बच्चे लेटे नींद का आनंद ले रहे थे। इस कोच सवार ज्यादा लोगों को माउंट आबू रोड़ उतरना था। एक व्यक्‍ति के मोबाइल पर गीत बज रहे थे, लेकिन मेरा दिमाग काम करना बंद कर चुका था। जो समाचार पत्र व पत्रिका रेलवे स्टेशन पर पढ़ी, उसमें एक बात थी कि चुनौतियों को देखकर घबराओ मत, उनका मुकाबला करो। यह परिस्थिति ऐसी थी, जिसको हैंडल करना जरूरी था, बिना किसी अन्य व्यक्‍ति को नुकसान पहुंचाए। मेरी निगाह मेरे सामने बैठी एक लडक़ी पर गई, जिसकी मोटी मोटी आंखों में काजल डाला हुआ था, वो बिल्कुल जब वी मेट की करीना जैसी नजर आ रही थी, लेकिन उसको भी वहीं तक जाना था जहां तक मेरी सीट पर बैठे लोगों को। वो अपने सामने बैठे एक व्यक्‍ति से बातें करने में मस्त थी, और बीच बीच में मुझे भी देख रही थी। वो निरंतर बोल रहा था, वह अलग अलग मुद्राओं में हां का संकेत देते हुए बातें सुन रही थी। मैं उसकी बदलती मुद्राओं को देखता रहा था, ताकि मेरे आस पास फैली अव्यवस्था पर मेरा ध्यान न जाए। कुछ घंटों के बाद माउंट आबू रोड़ आ गया, और रेलगाड़ी खाली हो गई एवं वो युवती भी उसी भीड़ केञ् साथ उतर गई। रेलगाड़ी खाली हुई एवं रोटी खाई और नींद का आनंद लिया। कुछ घंटों पश्चात गाड़ी फालना स्टेशन पर पहुंची और मैं घूमने के लिए थोड़ा नीचे उतरा तो आकर देखा मेरा बैग सीट के नीचे से निकालकर एक महिला ने अपने बैग वहां पर ठूंस दिए, मैंने अपना बैग अन्य जगह पर रख दिया। अब मेरी सीट के आस पास वाली छह सीटों पर पंजाबी गुजराती परिवार बैठा था, दोनों हिन्दी बोलना नहीं जानते थे, दोनों बातें करते एक दूसरे से लेकिन अपनी अपनी भाषा में। ऐसे में कुछ बातें समझाने के लिए मैं उनका ट्रांसलेटर बना, क्‍योंकि मेरा तालुक दोनों राज्यों से है। पंजाबी पूरी तरह जानता हूं तो गुजराती समझता हूं। धीरे धीरे सूर्य डूबता चला गया एवं अंधेरे की चादर फैलती चली गई। जोधपुर गाड़ी नौ बजे के करीब पहुंची। यहां पर एक यंग कपल हमारी सीटों के नजदीक पहुंचा। इस कपल के आने से मेरी उदासी भाग गई, जो मुझे कुछ कुछ पल बाद पकड़ रही थी। ऐसा नहीं कि यंग कपल में यंग लेडी मुझे अच्छी लग रही थी। इस यंग कपल के साथ एक छोटी सी उनकी बेटी थी, बिल्कुञ्ल रिदम जैसी। रिदम मेरी बेटी, जिसको नाना केञ् घर छोडक़र मैं पंजाब लौट रहा था। उसे बहुत ज्यादा मिस कर रहा था, उस बच्ची को देखकर मुझे रिदम याद आ रही थी, वो बच्ची बिल्कुञ्ल रिदम जैसी थी, लेकिन रिदम से पांच माह बड़ी। रिदम ने मेरे सफर पर निकलने से पहले खुद चलकर पांच फूट का सफर तय किया, जबकि राधिका बिंदास चल रही थी। रिदम की तरह राधिका ने भी अपने पापा को देर रात तक नहीं सोने दिया। वो उसको सुलाने की कोशिश करें तो वह रिदम की तरह ही चीखे। राधिका का बाप भी मेरी तरह उसको उठाकर रेलगाड़ी में घुमाने ले गया, ताकि कोई डिस्टर्ब न हो। एक चक्कर काटने के बाद राधिका करीबन सवा बारह बजे के करीब सो गई, तभी वहां टीटी आया, एवं 46 सीट पर सो रहे युवक से टिकट मांगा। वो टिकट दिखा रहा था कि इतने में दो अन्य यात्री टीटी केञ् पास आए एवं सीट देने का अनुरोध करने लगे, टीटी ने सख्‍ती से डांट फटकार लगाते हुए उनको वहां से भगा दिया एवं युवक की टिकट वापिस लौटते हुए सौ रुपए का नोट पकडक़र टीटी वहां से आगे बढ़ गया। कैञ्से खत्म हो सकता है भ्रष्टाचार, जिसकी जन्मदाता ही पब्‍लिक है। सोचते सोचते सो गया एवं सुबह उठा तो बठिंडा के बिल्कुल पास था। उठते ही निगाह सबसे पहले राधिका पर गई, जो धीमी आवाज में पापा वाली सीट पर खड़ी होकर मम्‍मी को उठने के लिए अनुरोध कर रही थी।