सोमवार, नवंबर 26, 2012

थप्‍पड़ अच्‍छे हैं

जोर से थप्‍पड़ मारने के बाद धमकी देते हुए मां कहती है, आवाज नहीं, आवाज नहीं, तो एक और पड़ेगा। जी हां, मां कुछ इस तरह धमकाती है। फिर देर बाद बच्‍चा पुराने हादसे पर मिट्टी डालते हुए मां के पास जाता है तो मां कहती है कि तुम ऐसा क्‍यूं करते हो कि मुझे मारना पड़े।

अब मां को कौन समझाए कि मां मैं अभी तो बहुत छोटा हूं या छोटी हूं, तुम कई बसंत देख चुकी हो। तुम भी इन थप्‍पड़ों को महसूस कर चुकी हो। मेरे पर तो तुम इतिहास दोहरा रही हो या कहूं कि एक विरासत को आगे बढ़ा रही हो। यह थप्‍पड़ मुझे जो आपने दिए हैं, वो कल मैं भी अपनी संतान को रसीद करूंगा या करूंगी, और मुझे पता भी न होगा, कब मेरा हाथ आपकी नकल करते हुए उसकी गाल पर छप जाएगा।

जब मम्‍मी मारती है तो पड़ोस में खड़े पापा या कोई अन्‍य व्‍यक्‍ति कहता है, क्‍यूं मारती हो बच्‍चे को, बच्‍चे तो जिद्द करते ही हैं, तुम्‍हें समझने की जरूरत है, मगर मां को नसीहत देने वाला, कुछ समय बाद इस नसीहत की धज्‍जियां उड़ा रहा होता है।

मां बाप के थप्‍पड़ का दर्द नहीं होता, क्‍यूंकि उनके पास प्‍यार की महरम है। हम बच्‍चे भी तो कितनी जिद्द करते हैं, ऐसे में क्षुब्‍ध होकर मां बाप तो मरेंगे ही न, वो बेचारे अपना गुस्‍सा और कहां निकालें। हम बच्‍चे मां बाप को छोड़कर कहीं जा भी तो नहीं सकते, अगर पापा ने मम्‍मी पर या मम्‍मी ने पापा पर अपना गुस्‍सा निकाल दिया तो बच्‍चों को जिन्‍दगी भर ऐसे थप्‍पड़ सहने पड़ते हैं, जिनके निशां कभी नहीं जाते। इसलिए थप्‍पड़ अच्‍छे हैं।

बुधवार, अगस्त 22, 2012

जितेंद्र गोभीवाला- तेरी सर्कस ही अलहदा थी यार

मेरी और जितेंद्र गोभीवाला की पहली मुलाकात आज से करीबन दस पहले हुई थी, जब मैं गांव से बठिंडा शहर पहुंचकर दैनिक जागरण में अपने कैरियर की शुरूआत कर रहा था, और जितेंद्र गोभीवाला की कामेडी भरपूर कैसिट 'कट्टा चोरी हो गया' रिलीज हुई थी। वो छोटी सी मुलाकात, कुछ समय बाद एक अच्‍छी दोस्‍ती में बदल गई। उसका कारण एक ही था, जितेंद्र गोभीवाला का मिलनसार व्‍यवहार और हमारा दोनों का समाज सेवा से लगाव, और एक ही संस्‍था से जुड़ाव।

मैं मीडिया लाइन में नया था, और मीडिया वालों का एक टिकाना था 'मेहना चौंक' स्‍थित यूनाइटेड वेलफेयर सोसायटी का ऑफिस या तहसील। यहां पर जितेंद्र से कई बार मुलाकातें हुई। उसको करीब से जानने का मौका मिला। वो कलाकार बाद में पहले दोस्‍त था। कट्टा चोरी हो गया के बाद जितेंद्र गोभीवाला की दूसरी वीडियो सीडी आई लो कर लो गल्‍ल। अब जितेंद्र स्‍टेज शो छोड़कर अपने नए प्रोजेक्‍ट की तरफ बढ़ रहा था कि मुझे शहर छोड़ना पड़ा और उसको बीमारी ने अपनी जकड़ में ले लिया।

उसके बीमार होने की ख़बर मुझे मध्‍यप्रदेश में मिली तो दिल पीड़ा से तड़फ उठा। उसकी सलामती के लिए दुआ की। पिछले पांच छह सालों में एक वक्‍त तो ऐसा भी आया, जब लगता था कि अब जितेंद्र जाएगा हम को छोड़कर। मगर दुआओं ने अपना असर दिखाया, जितेंद्र गोभीवाला फिर से तंदरुस्‍त होने लगा। मगर बीमारी अंदर अंदर खा रही थी, पर चेहरे पे शिकन तक नहीं थी। बस जब भी मिलता हंसते हुए मिलता। मैं और जितेंद्र एक बार चैकअप के लिए चंडीगढ़ पीजीआई गए, वो पूरे सफर ऐसे मस्‍त मौला इंसान की तरह बातें करता हुआ गया जैसे वो मुझे सांत्‍वना दे रहा हो, और मानो वो बीमार नहीं, मैं बीमार हूं।

मेरी और उसकी अंतिम मुलाकात डेढ़ माह पूर्व उसकी बीबीवाला चौंक दुकान पर हुई, जहां पर पहले भी बहुत सी मुलाकातें हुई। इस बार वो काफी तंदरुस्‍त नजर आ रहा था। उसके चेहरे पर मुस्‍कान थी। उसने कहा, इस बार सर्कस पक्‍का लगाएंगे। सर्कस उसका तकियाकलाम था। मुझे नहीं पता था, दोस्‍त तू इस बार इतनी बड़ी सर्कस लगा जाएगा, वो भी बिना बताए।

कॉलेज में पढ़ाई करते हुए कामेडी का शौक पड़ गया और जसविंदर भल्‍ला को अपना गुरू धारण कर लिया। उनके सन्‍निध्‍य में उनके साथ जितेंद्र ने कई बार काम भी किया। जितेंद्र गोभीवाला की अंतिम वीडीसी लो कर लो गल्‍ल थी, मगर वो आगे के लिए कुछ संजो रहा था, लेकिन वो उस को दुनिया के सामने रखता कि भगवान ने उसको अपने पास बुला लिया। जिन्‍दगी के बुरे वक्‍त में भी चेहरे पर शिकन नहीं आने दी। अपने परिवार और दोस्‍तों को उसी तरह दर्द छुपाकर हंसाता रहा, जैसे एक कामेडियन घर के दर्द को सीने में दबाकर अपनी बातों से जमाने को हंसाता है। मगर उसकी अचानक विदाई ने आंखें नम कर गई।

कुलवंत हैप्‍पी 

शुक्रवार, जून 08, 2012

लोग कहते हैं एक लाइन से जिन्‍दगी नहीं बदलती

मैं कभी नहीं भूल सकता उस शख्‍स को, नहीं नहीं यार मेरा उसकी ओर कोई उधार बाकी नहीं, बल्‍कि यह तो वो शख्‍स है, जिसने जिन्‍दगी के कुछ साल मांगे थे, और मैं मना करके भाग आया था। बस उसकी बातों को साथ लेकर और एक शेयर, शेयर कर रहा हूं, जो इनकी जुबान से निकला था :)


वक्‍त की वक्‍त से मुलाकात थी
वक्‍त को वक्‍त ही न मिल पाया
ये भी वक्‍त की बात थी

जबकि इससे पहले मेरे पास दिलवाले फिल्‍म का एक शेयर था, जो अजय देवगन बोलता है।

हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था।
मेरी कश्ती वहीं डूबी जहां पानी बहुत कम था।

वो शख्‍स था मेरा स्‍कूल टीचर सुरजीत सिंह, जिसने मुझे लूटा नहीं, बल्‍कि जिन्‍दगी की एक नई दिशा से रूबरू करवाया:)

उन्‍होंने लव मैरिज की थी, वो लव मैरिज के खिलाफ नहीं थे, और मैं तो पक्‍का कमीना शकल से लेकिन दिल से नहीं। उनको शक था कि मेरा ध्‍यान लड़कियों में है, उन्‍होंने मुझे अपनी कसम दे डाली, यह कहते हुए कि तुम मेरे छोटे भाई जैसे हो:)

किसी छात्र के लिए इससे ज्‍यादा खुशी की बात क्‍या हो सकती है कि उसका शिक्षक उसको भैया की उपाधि से नवाज दे:) कसम यह दी कि तुम किसी लड़की से प्‍यार नहीं करोगे, जब तक अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते :) ऐसा नहीं था कि मैं उन दिनों अपाहिज था, उनके कहने का अर्थ आप भी समझते हैं और मैं भी उन दिनों समझ गया था।

अब मेरे लिए वहां रुकना मुश्‍किल था, एक तरफ शिक्षक जो अब भाई बन चुका था, दूसरी वो लड़की जिसको मैं पसंद करता था, प्‍यार तो पता नहीं, क्‍यूंकि मेरे प्‍यार की भाषा तो आज तक में भी नहीं समझ पाया कि आखिर मैं प्‍यार किसे करता हूं और किसे नहीं।

उसके बाद आज तक उस शिक्षक और लड़की से मिला नहीं, लेकिन उन दोनों का चेहरा बराबर मुझे याद है। उनका वो शेयर अब भी दिल में बसता है। मिला वक्‍त तो उस वक्‍त से मुलाकात जरूर करूंगा।