शुक्रवार, मार्च 19, 2010

स्लैमबुक और उसकी मानसिकता

कुछ दिन पहले बठिंडा से मेरे घर अतिथि आए थे, वो मेरे खास अपने ही थे, लेकिन अतिथि इसलिए क्योंकि वो मुझे पहले सूचना दिए बगैर आए थे, और कमबख्त इस शहर में कौएं भी नहीं, जो अतिथि के आने का संदेश मुंढेर पर आकर सुना जाएं। वो आए भी, उस वक्त जब मैं बिस्तर में था, अगर खाना बना रहा होता तो शायद प्रांत (आटा गूँदने का बर्तन) में से आटा तिड़क कर बाहर गिर जाता तो पता चल जाता कोई आने को है।
वो कुछ दिन यहाँ रहे, मुझे अच्छा लगा, लगता भी क्यों ना, तीन साल में पहली बार तो कोई बठिंडा से आया था, जो मेरे घर रुका। आने वाले अतिथियों में मेरी मौसी, मौसी की पोती यानी मेरी भतीजी, मौसेरा भाई और उसकी पत्नी। मौसेरा भाई अपना सामान और कुछ अन्य काम निपटाने आया था, और इस दौरान सैर सपाटा तो होना ही था, जो हुआ। एक दिन हम सब इंदौर के बेहद प्रसिद्ध मॉल टीआई में गए, वहाँ के बिग बाजार में से मेरी भतीजी, जिसकी उम्र लगभग 11 साल होगी, ने एक स्लैमबुक खरीदी, जो पिछले कई दिनों से खरीदने की जिद्द कर रही थी, जबकि मैंने उसको कहा था कि दोस्तों की जगह दिल में होती है, स्लैमबुक में तो सिर्फ सिर्फ सिरनामें (पते) रह जाते हैं। उसने बिग बाजार से स्लैमबुक ले ली, और बाहर आ गई। मैं उससे दूर था, वो बार बार कुछ कह रही थी, जो सुनाई नहीं दे रहा था। मैं सीढ़ियाँ चढ़ रहा था, और मेरा मौसेरा भाई सीढ़ियाँ उतर रहा था। स्व-चलित सीढ़ियाँ थी, स्लैम बुक का बिल करवाने जा रहा हूँ वो कहते हुए नीचे जा पहुंचा, लेकिन इतने में एक आवाज गई अगर पैसे ज्यादा हैं तो भाई हमें दे दो। बस उसका मन बदला, और वो फिर ऊपर आ गया। मैंने अपनी भतीजी के पास जाकर पूछा क्या हुआ? तुम सबसे क्या कह रही हो धीरे धीरे? उसने बताया कि वो स्लैम बुक जो लेकर आई हूँ, उसका बिल नहीं हुआ। मैं हैरान था, आखिर वो स्लैमबुक बिग बाजार से बाहर तक लेकर कैसे आई, बिन बिल के। उसने बताया कि जब उससे बिल पूछा गया तो उसके साथ आ रहे एक मेरे अन्य मित्र ने कहा सब चीजों का बिल हो गया। मैंने कहा कि अगर बिल न हुआ हो..तो वहाँ सूचना यंत्र बजना शुरू हो जाता है। उसने कहा कि ऐसा तो कुछ नहीं हुआ, मतलब खुदा आज उसका इम्तिहान ले रहा था। बाकी सब खुश थे, क्योंकि उनके 45 रुपए बच रहे थे, लेकिन वो 11 साल की बच्ची खुश न थी, उसको लग रहा था कि उसने चोरी कर ली। हम टीआई से खजराना मंदिर गए, वहाँ से करीबन 11 बजे लौटे, तब तक वो कहती रही चाचा वो स्लैम बुक का बिल करवा आते तो अच्छा रहता। मैंने उसको भरोसा दिया कि मैं उसका बिल करवा आऊंगा, जब फिर बिग बाजार जाऊंगा। जिसके बाद जाकर वो संतुष्ट हुई। मुझे इस बच्ची पर इसलिए नाज होता है, क्योंकि वो शुरू से ही ऐसी है। जब वो सात आठ साल की थी, तब उसके जन्मदिन पर मैं उस को एक गिफ्ट दिलाने के लिए एक शॉप ले गया, उसको एक बनावटी एक्यूरियम पसंद आ गया, वो शायद पौने दो सौ का था। मैंने दुकानदार को जब पैसे दिए उसने देख लिया। घर जाते हुए बोली। चाचा कुछ सस्ता ले लेते, तुम्हारा ज्यादा खर्च हो गया।

4 टिप्‍पणियां:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

कभी स्लेम बुक को पढे . उसके प्रश्न लाजबाब कर देते है .
ईमानदार भतीजी को आशिर्वाद

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया रहा संस्मरण...कुछ तारत्म्य टूट सा गया कुछ पंक्तियों में..

Dev ने कहा…

बहुत अच्छा लगा ....आपके भतीजी के बारें में जान कर .....ऐसे ईमानदार बच्चे को मेरा सलूट .

शरद कोकास ने कहा…

वाह स्लैम बुक
शहीद भगत सिंह पर एक रपट यहाँ भी देखें
http://sharadakokas.blogspot.com