सोमवार, दिसंबर 21, 2009

शौचालय और बेसुध मैं

मुझे वो दिन कभी नहीं भूलता। उस दिन मैं काम कर कर बेसुध हो चुका था। मेरा शरीर गतीविधि कर रहा था, जबकि मेरा दिमाग बिल्कुल सुन्न हो चुका था, क्योंकि काम कर कर दिमाग इतना थक चूका था कि उसमें और काम करने की हिम्मत न थी। मैंने अपनी कुर्सी छोड़ी, और टहलने के लिए नीचे के फ्लोर पर चला गया, जहां चाय और कॉफी बनाने वाली मशीन लगी हुई थी। मैंने एक कप चाय ली, और घुस गया साथ वाले रूम में, जो बिल्कुल खाली था। सोचा कि एकांत है, कुछ समय यहां पर रहूंगा तो तारोताजा हो जाऊंगा। मैंने चाय का कप एक टेबल पर रखा, और पेसाब करने के लिए बाथरूम में चला गया।

शुक्रवार, दिसंबर 11, 2009

मेरे पिता और पक्षी फीनिक्स


कुछ दिन पहले मैं अहमदाबाद के रेलवे स्टेशन पर खड़ा बठिंडा को जाने वाली रेलगाड़ी का इंतजार कर रहा था, मैं खड़ा था, लेकिन मेरी नजर इधर उधर जा रही थी, लड़कियों को निहारने के लिए नहीं बल्कि कुछ ढूंढने के लिए, जो खोया भी नहीं था। इतने में मेरी निगाह वहां पर स्थित एक किताब स्टॉल पर गई, मैं तुरंत उसकी तरफ हो लिया, जब पत्नी साथ होती है तब मैं खाने पीने के अलावा शायद किसी और वस्तु पर पैसे खर्च कर सकता हूं, इसलिए हर यात्रा के दौरान मुझे किताबें या मैगजीन खरीदने का शौक है। इस बार मैंने अपने इस सफर के लिए 'आह!जिन्दगी' को चुना, मैंने जब उसको खोला तो मैं सबसे पहले उस लेख पर गया, जो महान फुटबाल खिलाड़ी माराडोना पर लिखा गया था, इसको लेख को पढ़ते हुए मुझे मेरे पिता का अतीत याद आ गया, उनका संघर्ष याद आ गया।