शुक्रवार, जुलाई 31, 2009

एक आंसू गिरा उसकी आंख से....

वो ही रेलवे स्टेशन, वो ही रेलगाड़ी, पर कुछ बदलाव था इस बार। फर्क इतना था कि कभी इस गाड़ी से मैं आया था, और आज इस गाड़ी से कोई जा रहा था। जैसे परिंदे दाने चुगने के बाद अपने घरों की तरफ चल देते हैं, वैसे ही एक परिंदा आज यहां से उड़कर अपने घर जाने को तैयार था, बस देरी थी रेल गाड़ी छूटने की। सच में वो परिंदे नसीब वाले होते हैं, जिनको शाम ढले अपने बसेरे में पहुंचने को मिल जाता है, और कुछ बद-नसीब परिंदे जो बस उस दिन की बोट जोहते हैं, जिस दिन उनकी तकदीर बदले, और वो अपने वतन में, अपनों के बीच, अपनी जिन्दगी के कीमती लम्हे गुजारें। प्रवासी होने का गम बहुत बड़ा होता है, इसलिए इस बार दोस्त की विदाई के वक्त गम से ज्यादा खुशी थी कि वो अपने घर जा रहा है, अपनों के बीच। उन गलियों में, जिन गलियों को छोड़कर वो कभी इस जगह पहुंच गया था, जहां सिर्फ उसके पास नए दोस्त थे और कुछ अजनबी लोग। हम अप्रवासियों को भी अप्रवासियों का सहारा होता है, आज वो एक सहारा खत्म हो रहा था। रेलवे स्टेशन विदाई का वक्त, और सब ठहाके लगा रहे थे, शायद हँसी के तले गम छुपा रहे थे। गम तो होता ही जब को साथी चला जाए। वो भी हँसते हुए एसी कोच में चढ़ गई, गाड़ी वाले बाबू को क्या पता कि वो कितनों को बिछोड़कर लेकर जा रहा है और कितनों को अपनों से मिलाने के लिए। उसका तो काम है गाड़ी चलाना। गाड़ी अपने समय पर प्लेटफार्म से छूटी। वो हाथ हिलाते हुए दरवाजे से विदा ले रही थी, और रेलगाड़ी के साथ साथ हम से दूर जा रही थी, इतने में उसका हाथ उसका उसके चेहरे की तरह गया और फिर पीछे चला गया। इतने में वो आंखों से ओझल हो गई। मुझे नहीं पता, उसने हाथ नीचे की तरफ क्यों क्या किया, लेकिन
मुझे ऐसा लगा कि जो आंसू उसने दोस्तों के बीच खड़े होकर विदाई के वक्त छुपाए थे, उनमें से उसकी आंख से के मोती सा आंसू रेल की पट्ड़ी पर जा गिरा। अगर ये सच हुआ तो मैंने उसकी आंख से एक आंसू गिरते देखा, लेकिन उसने कितने आंसू रेलवे की सीट पर गिराए होंगे, ये मैं नहीं जानता। इस सवाल का जवाब वो खुद लिखेगी, जब वो इस ब्लॉग को पढ़ेगी। जब वो इंदौर में आई थी, तब मेरे लिए बिल्कुल आजकल थी, मगर जब वो इंदौर से गई तो इतनी खास हो गई कि अगर कभी खुदा ने मौत से पहले पूछा बोल तेरी आखिरी ख्वाहिश क्या है, तो जुबां पर आने वाले नामों में इस दोस्त का भी नाम होगा। पता नहीं, तब मुझे शायद ये मेरा दोस्त याद रखेगा, या अपनी जिन्दगी में मस्त होकर मुझे सदा के लिए भुला देगा। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मैंने तो इस दोस्त को सदा याद करने के लिए अपने ब्लॉग पर छोड़ दी दे लिखत...जब जब कोई प्रतिक्रिया भेजेगा..तब तब इंदौर और इस दोस्त की याद ताजा होती रहेगी। वैसे याद तो उनको किया जाता है, जिनको कभी भूले हों...