आज मैंने भी अपनी मां का श्राद्ध पाया, लेकिन खुद ही घर में खाया। सचमुच! यकीन नहीं आता होगा न। मुझे भी यकीन नहीं आ रहा था क्योंकि मां को पूर्वजों की रोटी खिलाते हुए देखा, किसी गरीब घर के बच्चों या परिवारजनों को। आज मेरी पत्नी बोली हम किसी पंडित पंडितायन आदि को खिलाने की बजाय मंदिर बाहर बैठे हुए भूखे नंगे लोगों को श्राद्ध की रोटी खिलाएंगे ताकि मां खुश हो सके। आखिर होममिनिस्टर के आगे हमारी कहां चलती है, वो हड़ताल पर चली या अस्तीफा देकर चली गई तो अपनी तो नैया डुब जाएगी। मैंने कहा ठीक है, उसने पूरी और खीर बनाई। मुझे भरकर एक बर्तन में खीर दे दी। मैं और मेरा तेतेरा भाई खीर पूरी लेकर मंदिर पहुंचे। हम बांटने ही लगे कि वहां बच्चों की फौज लिए बैठी एक महिला बोली, ये नहीं खाएंगे, तुम पैसे दे सकते हो। मैंने बोला, चल किसी और को खिला देते हैं। वहां गया, उस महिला ने खीर पत्तल में डलवा तो ली, लेकिन खीर बाद में वहां पर ऐसे गिर रही थी जैसे गिलास से पानी। फिर मेरी नजर एक बुजुर्ग व्हील चेयर पर बैठे साधुनुमा व्यक्ति पर पड़ी, जब उसको मैंने पूछा बाबाजी पूरी खीर खाओगे। कोई जवाब नहीं आया। इतने में वहां एक और युवक आया और मेरी तरह ही बोला। बाबा ने उत्तर दिया, दक्षण दोगे, वो पहले तो चुप हो गया। फिर दुबकी आवाज में हां बोला। इधर, बाबा ने फटाक से उच्ची आवाज में कहा क्यों नहीं खाएंगे? पहले दक्षण हो जाए। मैं चकित रह गया। फिर मैंने सोचा शायद बाबा पहले किसी सरकारी दफ्तर में था, शायद इस लिए काम के लिए पहले रिश्वत मांग रहा है। अब तो श्राद्ध खिलाने के लिए भी रिश्वत देनी पड़ती है।
3 टिप्पणियां:
har jagah rishwat ho gaya hai..
bin rishwat to shayad hi koi jaruri kaam aage badhata ho..
badhiya prasang..
रे तो हमे बुला लेते बिना रिश्वत खाते और तुम्हारी पत्नि के गुन गाते
चलो जी इस टी शर्ट दी उम्र इनी ही सी पर वेख लवो इस ने तियाग दिते जाण बाद वी तुहाडा साथ नहीं छडिया सगों तुहडे घर दी शोभा वधा रही है सफाई कर के। अते अपणे भार वल हुणे ही ध्यान दिओ ताकि अगली टी शर्ट नू छेती जुदा न् करना पवे ते कदों खरीद रहे हो नवीं टी शर्ट?
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