एक फूल सा बच्चा, गली में खड़े पानी के कारण हुए कीचड़ के बीचोबीच मस्ती कर रहा है। उसको कितना आनंद महसूस हो रहा था, उसका तो अंदाजा नहीं लगा पाऊंगा। हाँ, लेकिन उसके चेहरे की खुशी मेरे दिल को अद्भुत सुकून दे रही थी।
उसको कीचड़ में उछल कूद करते देख, घर के भीतर से उसकी माँ ने आवाज दी, लेकिन वो अपनी मस्ती में मस्त कहाँ सुनने वाला था। तीन चार आवाजें लगाने के बाद उस मासूम की माँ और मेरे दोस्त के ततेरे भाई की पत्नि घर से बाहर आई, जो अपने बेटे से भी ज्यादा खूबसूरत थी, रूप-रंग नैन-नक्षों से, मगर दिल से नहीं।
उसने और उसके पति ने इस मासूम बच्चे की दादी को घर से बाहर निकाल दिया था, जो जवानी में विधवा हो गई थी, लेकिन ताउम्र इनको बड़ा करने के लिए जीती रही, बेरंग लिबासों में। जितनी खुशी उस मासूम को देखकर हुई, उतना ही दुख उसकी माँ के चेहरे पर बनावटी मुस्कान को देखकर हुआ, जो उसने मुझे देखते हुए दी।
मैं कुछ घंटों बाद उसी रास्ते से फिर लौट रहा था, लेकिन वो मासूम फिर उसी तरह खेल रहा था, लेकिन अब उसको रोकने वाला कोई न था, क्योंकि उसकी माँ आंगन में खटिया लगाकर नींद का आनंद ले रही थी और वो मासूम बच्चा बाहर कीचड़ में आनंद ले रहा था। जिस कीचड़ में इस बच्चे को आनंद महसूस हो रहा है, उस कीचड़ में एक समझदार को आनंद प्राप्त नहीं हो सकता। ऐसा आनंद लेने के लिए तो बच्चा ही रहना होगा। जब मैं भी बच्चा था, मैं भी कीचड़ देखकर सूखी जमीन छोड़ देता था, कमल की तरह इस कीचड़ में खड़ा हो जाता, लेकिन मेरी माँ मुझे आवाजें न लगाती, उसको काम से फुर्सत न होती।
लोगों ने कीचड़ को बुरा बना दिया, जिसमें बचपन का असली आनंद छुपा है, जिसमें कमल खिलकर अपने यौवन पर आता है। कीचड़ को वैसे ही बना दिया, जैसे शिव की बारात को। देखा जाए तो शिव की बारात भी एक अनुशासन का पाठ पढ़ाती है, अलग अलग लोग, लेकिन सब अनुशासन में चलते हैं। जिसे हम सब कह सकते हैं अनेकता में एकता। उस मासूम को कीचड़ में खेलते हुए आज भी महसूस कर सकता हूँ, उसके चेहरे की खुशी की एक झलक आज भी देखता हूँ। उसकी याद मन को खुशी के अहसास से इस तरह तर-बतर कर जाती है, जैसे नई इमारत को हम करते हैं।
7 टिप्पणियां:
दिल को छूती रचना। एक बच्चे की आढ़ में बहुत खुश कह दिया आपने।
अमित भारद्वाज, मुम्बई।
बहेतरीन रचना ......एक बच्चे का बचपना कितना मायने रखता है ये आपने बड़ी नज़ाकत से पेश किया है .
बहुत खूबसूरत मासूम सी रचना
बचपन तो बचपन है
कुलवंत ये कीचड मे खेलना केवल आनन्द ही नही देता इस से बच्चे मे बिमारियो की लिये प्रतिरोधक शक्ति बढती है आज कल के बच्चे इसी लिये जल्दी बिमार होते हैं कि उन मे रोग प्रतिरोधक शक्ति नही है औ8र गरीबो के मिट्टी मे खेलने वाले बच्चे अमीरों के बच्चों से कम बिमार होते हैं। अब बचपन कहाँ से लायें हां जब मेरा पोता आ जायेगा तब जरूर मिट्टी मे उसके साथ खेलूँगी। आशीर्वाद ।
यह रचना दिल को छू गयी...
ye ehsaas badi ajib cheez hai..khoobsurat!!
ye ehsaas badi ajib cheez hai..khoobsurat!!
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