रात का समय था और हमारे घर मेरे पिता श्री अपने एक अन्य दोस्त के साथ बैठकर शराब का लुत्फ उठा रहे थे. मैं दूर खड़ा इस दृश्य को बड़ी गौर से देख रहा था, पता नहीं मुझे क्या हुआ, मैं उनके पास गया और बोला, अंकल जी अगर आप ने शराब पीनी है तो हमारे घर में मत आया करो.
मेरे शब्द सुनते ही मेरे पिता एवं अंकल जी दंग रह गए, उन्होंने इधर उधर देखा, शायद वो सोच रहे थे कि मुझे यह बात कहने के लिए मेरी मम्मी ने भेजा है. अभी वो इधर उधर देख ही रहे थे कि इतने में मेरी मम्मी पड़ोस में रहने वाली मेरी भाभी के घर से आई. जैसे अंकलजी ने देखा कि मेरी मम्मी बाहर आ रही हैं तो वो हंसते हुए बोले अगर भाभी जी आप बाहर न होते तो मुझे लगता कि आप ने इसको समझाकर मेरे पास भेजा होगा.
मेरे अंकलजी ने मुझे गोद में बिठाया और बोले ठीक है सरपंच आज के बाद घर से बाहर पिया करेंगे. इसके बाद मेरे पिता जी ने मेरी तारीफों के पुल बांधने शुरू कर दिए. मेरे पिता जी शराब पीकर अकसर मेरी तारीफ किया करते थे. मेरे पिता को मेरी याददाश्त पर बहुत गर्व था क्योंकि मुझे घर की हर चीज एवं हर बात याद रहती थी जो कि कभी कभी मेरे पिता को हैरत में डाल देती थी. जब उक्त घटना घटित हुई तब शायद मेरे चार वर्ष का था.
3 टिप्पणियां:
बचपन के संस्मरण बांटने के लिए धन्यवाद. बचपन की यादे कभी विस्मृत नहीं होती है.
बहुत प्रेरक संस्मरण।
संस्मरण बांटने के लिए धन्यवाद
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