सोमवार, अप्रैल 27, 2009
मैं, मेरे पिता और तालिबान
कीबोर्ड की टिकटिक से कोसों दूर, अपने होमटाउन में पूरा एक महीना बीत किया. लेकिन तालिबान ने वहां पर भी पीछा नहीं छोड़ा. खबरिया चैनलों के कारण हर घर में तालिबान टीवी की स्क्रीन पर नजर आता है, लोगों के दिमागों पर ही नहीं छाया बल्कि लोगों की जुबां पर भी तालिबान शब्द चढ़ गया.इंदौर से मैं बठिंडा के लिए पिछले महीने निकला था, घर शाम को पहुंचा, घर में मेरे पिता जी और अन्य दो व्यक्ति बैठे हुए टीवी देख रहे थे, और उनके बीच बातें हो रही थी तालिबान की. मैं हैरान था कि जहां भी तालिबान की बातें, तो इतने में टीवी पर आ रही एड खत्म हुई तो एक न्यूज एंकर बताने लगा तालिबान की हिम्मत. वो सब गौर से देखने लगे और सुनने लगे. फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि तालिवाल क्या है? ये तो लगता है पाकिस्तान को खत्म कर देगा. लेकिन मैं उनको क्या समझाता कि मुट्ठी भर लोग कुछ नहीं कर सकते, लेकिन जो ताकत इनके पीछे काम कर रही है, उसका मकसद बस आतंक फैलाना है. मेरे पिता जी तो तालिबान को तालिवाल ही कहते हैं.सच बोलूं तो मेरे पिता जी और उसके साथी, तालिबान को इस तरह देखते है जैसे आज के बच्चे कार्टून नेटवर्क चैनल पर टॉम एंड जेरी को देखते हैं. जब घर से पिताजी बाहर होते हैं तो टीवी पर पंजाबी गीत सुनने को मिलते थे, जैसे मेरे पापा जी घर में प्रवेश करते तो सब टीवी छोड़कर भाग जाते और कहते आ गए तालिबान, तालिबान. मेरे घर के समीप एक घर बनाने का काम करने वाला मिस्त्री रहता है, जब तक वो शाम को मेरे पापा के पास आकर हमारे टैलीविजन पर तालिबान संबंधित खबरें न सुन ले, उसको शायद रोटी हजम नहीं आती, मेरी बहन भाभी चिल्लाते रहते हैं कि छोटी बहू देखनी है, राधिका वाला सीरियल देख लेने दो.अब रिमोट डैडी के हाथों में होता है तो बस खबरिया चैनल चलते हैं, पंजाबी न्यूज चैनल नहीं चलाते क्योंकि वो तो जब देखो तब बादल का गुनगाण करते रहते हैं. और इन चैनलों पर कैप्टन साहिब की फोटो तो तब ही आती है, जब कोई एंटी खबर प्रसारित हो रही होती है. इस लिए हिन्दी चैनलों पर जोर है, हिन्दी चैनल भी वो जो तालिबान की खबरें देता हो..ऐरा गैरा चैनल तो पसंद ही नहीं उनको. हिन्दी भी कम ही समझ आती होगी, मेरे पिता जी और अन्य लोगों को. लेकिन अगर तालिबान की स्टोरी इंग्लिश चैनल पर भी आती तो वो ठहर जाते हैं और सुनते हैं,,,बेशक बाद कहें साली ये भाषा तो समझ में ही नहीं आती. एक महीने तक मैंने तालिबान की हर कड़ी देखी, मजबूरी में चाहे वो शरियत कानून लागू करने की हो, चाहे स्वात घाटी से निकलकर तालिबानी अजगर की पंजाब की तरफ रुख करने की हो या फिर अंतिम कड़ी बूनेर से तालिबान के वापिस जाने की. इसके अतिरिक्त कोड़े बरसने की. अन्य लोग (सुरजीत मिस्त्री, मोहना अंकल) और मेरे पिता जी के दरमियान जब बातें होती हैं, तालिबान की या फिर राजनीति की. इसमें कोई शक नहीं कि तालिबान को हिन्दुस्तान में खबरिया चैनलों ने हौआ बनाकर रख दिया. मैंने उनको कई बार समझाया कि तालिबान बस ऐसे है, जैसे पंजाब में कभी खालिस्तान नामक आतंकवाद ने सिर उठाया था. मगर खबरिया चैनलों ने उनके दिमाग में तालिबान की ऐसी शक्ल बना दी कि उनको लगता है कि पूरे विश्व पर तालिबान काबिज हो जाएगा. एक महीने तक मुझे तालिबान तालिबान शब्द ने पका दिया. अगर घर में कोई रिश्तेदार भी आता तो पापा जी उनको तालिबान की कहानी सुनाने बैठ जाते, कभी कभी तो नेताओं पर क्रोधित होकर कहते साले तालिबानी भारती नेताओं को क्यों नहीं मारते..मैंने उनको बताया कि भारत में भी तालिबान है बस उसका नाम नक्सलवाद है.
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8 टिप्पणियां:
एक दर्शक के घर में क्या होता है, जानकर अच्छा लगा। बहस वहां भी चल रही है।
अक्सर हम अपने घरों या अपने आसपास ऐसी घटनाएं महसूस कर सकते हैं। प्रशंसनीय है अपना यह मौलिक पोस्ट। शुभेच्छा।
दु्ष्टों की शक्ति को कम समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। यह तालीबान सारे संसार को लील सकता है। यह एक पागलपन है और जिस पागल को अपने जीवन से मोह न हो उसे रोक पाना कठिन है। धार्मिक पागलपन को रोक पाना तो और भी कठिन है। वैसे शायद ही कोई हो जो इनके बारे में सुनसुन कर तंग न आ गया हो।
घुघूती बासूती
भारत में भी तालिबान है बस उसका नाम नक्सलवाद है.sahi kaha par inme dhaarmik kattarpanth nahi hai ...
kaaphi dino baad aapka post padhne ko mila achchha laga ..
taaliban par achchha post diya .....bachchon me bahut ghabraahat rahti hai..
इस पोस्ट के लिये बहुत आभार....
एक श्वेत श्याम सपना । जिंदगी के भाग दौड़ से बहुत दूर । जीवन के अन्तिम छोर पर । रंगीन का निशान तक नही । उस श्वेत श्याम ने मेरी जिंदगी बदल दी । रंगीन सपने ....अब अच्छे नही लगते । सादगी ही ठीक है ।
लेकिन अगर तालिबान की स्टोरी इंग्लिश चैनल पर भी आती तो वो ठहर जाते हैं और सुनते हैं,,,बेशक बाद कहें साली ये भाषा तो समझ में ही नहीं आती.....
हा...हा...हा....!!
हालांकि आपके पिताजी व् अन्य बुजूर्गों की चिंता जायज है ...पर आपकी चुटीली बातों ने इसे मनोरंजक बना दिया ......!!
kafi achha laga padh kar ke
kafi achha laga
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