शनिवार, मार्च 14, 2009
मेरे गांव का 'निराला बीच'
गोवा के बीच कैसे हैं या फिर पांडुचेरी के समीप बना खास विदेशियों के लिए एक बीच कैसा है. मैं नहीं जानता, क्योंकि कभी जाने का मौका ही नहीं मिला. इन बीचों के बारे में सुनने को अक्सर मिल जाता है क्योंकि इन बीचों पर विदेशी महिला पर्यटकों के साथ सामूहिक बलात्कार की खबरें, जो आती जाती रहती हैं. और बीचों पर पैसे खर्च कर कैसा आनंद मिलता है, वो पता नहीं. लेकिन हां, एक बीच मुझे पता है, जो गर्मियों में अक्सर भरा मिलता था. जो किसी भी जात धर्म नसल के लिए वर्जित नहीं. जहां पर सब नसल के लोग आते हैं, हर वर्ग, हर उम्र के. कभी कभी तो बाप बेटे एक साथ भी मौज मस्ती करते हुए मिल जाते थे. आप सोच रहे होंगे, ऐसा कौन सा बीच है. है मेरे दोस्त, मेरे गांव का बीच. मुझे लगता है कि ज्यादातर गांव में मेरे गांव जैसे बीच आम मिल जाएंगे. बस नजरिए की बात है. मेरे गांव के बस अड्डे से करीबन आधा किलोमीटर दूर एवं मेरे खेतों के बिल्कुल साथ से एक नहर बहती है, जो करीबन 15 फुट गहरी है, जिसका पानी आसमानी रंग का दिखता है. इसके साथ कच्चे रास्ते हैं, जो खेतों को मुख्य सड़क से जोड़ते हैं. इन कच्चों रास्तों से हर रोज दर्जनों ट्रैकटर ट्रालियां बैल गाड़ियां गुजरती हैं. वाहनों के आवागामन से इन कच्चे रास्तों की मिट्टी डरमीकूल से भी ज्यादा मुलायम हो जाती है, एक दम पाउडर के माफिक. जब सूर्यदेव जून जुलाई में जोरों की गर्मी बरसा रहा होता है एवं पसीना पूरे शरीर को ऐसे तर-ब-तर कर देता है, जैसे नए सीमेंट के बने मकान को व्यक्ति पानी छिड़क कर तर-ब-तर करता है. ऐसे मन को राहत देने लिए गांववासियों को पेड़ों की ठंडी छाया के बाद नहर याद आती है. जिसके शीतल जल में डुबकी लगाकर ठंड का अहसास होता है एवं गर्मी से निजात मिलती है. नहर का पानी गर्मियों में भी इतना ठंडा होता है कि एक घंटा नहाने के बाद आपको ठंड लगने लग जाएगी. शरीर में ठंडे पानी के चलते घुस गई ठंड को मारने के लिए भट्ठी पर रखे दानों की तरह तिलमिला रही कच्चे रास्तों की पाउडर सी मुलायम मिट्टी पर बिंदास लोटना, सच में बहुत आनंदमयी होता है. कुछ देर इन रास्तों की पाउडर सी मुलायम मिट्टी पर लोटना और फिर दौड़ते दौड़ते नहर के ठंडे पानी में कूद जाना. इस दौरान जो आनंद आता है, शायद वो आनंद किसी और बीच पर तो न आएगा. कोई फालतू का खर्च नहीं, बस मौजां ही मौजां..
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3 टिप्पणियां:
वास्तव में नहर में नहाने व विशेष डर्मीकूल का मजा ही कुछ और होता होगा। अगली बार फोटो भी लगा दीजिएगा, ताकि हम भी आनन्द ले सकें।
घुघूती बासूती
fantastic..... maja aa gaya...bachapan me chala gaya....aapake lekh se wo tasviren aakhon ke saamane aa gayi jo bhulane laga tha...
अति सुन्दर. इसका मतलब यह हुआ कि जो जानवर कीचड में लोट पोट होते हैं, और जो हाथी पानी में जाने के पहले अपने शरीर पर धूल उंडेलता है, इन्होने प्रकृति से पहले से ही सीख ले ली है. हम तो मानते हैं कि सड़क की उस चिकनी मिटटी शरीर पर लगा कर नहर में डुबकी लगाना एकदम शीतलता प्रदान करता ही होगा.आभार
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