आज वो बैंक भी बदल गया और मेरा बैंक खाता भी। वो बैंक अब एचडीएफसी हो गया जो कभी बैंक ऑफ पंजाब हुआ करता था, मेरा खाता भी अब इस बैंक में आ गया। वो वाला नहीं नया बैंक खाता, वो तो बहुत पहले ही बंद हो गया था, लेकिन वो पहला बैंक खाता मुझे आज भी याद है। उस बैंक में चैक लगाने और पैसे निकलवाने के लिए जाना। कतार में लगना, उस मैडम को देखना, जो मुझे कतार में लगे हुए देखती। कभी कभी कैश काउंटर पर वो भी आ जाती, बस उस दिन काम थोड़ा जल्दी हो जाता..आम दिनों के मुकाबले।
शुक्रवार, अक्टूबर 23, 2009
महिलाओं का मेरे प्रति आकर्षण-पार्ट-2
शुक्रवार, अक्टूबर 09, 2009
महिलाओं का मेरे प्रति आकर्षण
मैंने अपनी जिन्दगी में बहुत बार इस बात का अहसास किया है कि मर्दों के मुकाबले महिलाओं का मेरे प्रति आकर्षण ज्यादा रहा है। अगर आज मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे बहुत सी महिलाएं याद आती हैं, जिनका मेरे प्रति आकर्षण था, हर आकर्षण का मतलब शारीरिक संबंधों से नहीं होता। मुझे याद आ रहे हैं वो बचपन के दिन, जब मैं दारेवाला गाँव में स्थित अपने घर के बाहर मिट्टी में खेल रहा होता था और घर के भीतर मां काम में जुटी होती थी। जब मैं मिट्टी के साथ मिट्टी हो रहा होता, तो वहां से सिर पर घास की गठड़ी उठाएं जो भी महिलाएं गुजरती, वो मुझे बुलाकर एवं छेड़कर गुजरती, इतना ही नहीं कुछ तो मुझे अपनी उंगली पकड़ाकर अपने घर तक ले जाती, और मैं भी निश्चिंत उनके साथ चल देता।
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